Thursday 30 January 2014

चाचा का लण्ड चूसा और खींच खींच कर रस निकालने लगी

मेरे घर वाले जब अहमदाबाद में जब सेटल हुए तो मुझे पापा ने होस्टल में डाल दिया। होस्टल में रह कर मैंने एस.सी. की पढ़ाई पूरी की थी। मेरे होस्टल के पास ही पापा के एक दोस्त रहते थे, पापा ने उन्हें मेरा गार्जियन बना दिया था। वो चाचा करीब 54 55 साल के थे। उनका बिजनेस बहुत फ़ैला हुआ था। एक तो उन्हें बिजनेस सम्हालना और फ़िर टूर पर जाना... उन्हें घर के लिये समय ही नहीं मिलता था। आन्टी नहीं रही थी... बस उनके दो लड़के थे, जो बिजनेस में उनका साथ देते थे। घर पर वो अकेले रहते थे।
उन्होने घर की एक चाबी मुझे भी दे रखी थी। मैं कम्प्यूटर के लिये रोज़ शाम को वहां जाती थी... चाचा कभी मिलते...कभी नहीं मिलते थे... उस दिन मैं जब घर गई तो चाचा ड्रिंक कर रहे थे और कुछ काम कर रहे थे... मैं रोज़ की तरह कम्प्यूटर पर अपने ईमेल चेक करने लगी...
आज चाचा मुझे घूर रहे थे... मुझे भी अहसास हुआ कि आज ...चाचा कुछ मूड में हैं...
"नेहा मुझे लगता है तुम्हें कम्प्यूटर की बहुत जरूरत है क्योंकि तुम रोज़ ही कम्प्यूटर प्रयोग करती हो !"
"हां चाचा... पर पापा मुझे अभी नहीं दिलायेंगे..."
"तुम चाहो तो ये कम्प्यूटर सेट तुम्हारा हो सकता है... पर तुम्हे मेरा एक छोटा सा काम करना पड़ेगा..." सुनते ही मैं उछल पड़ी...
"सच चाचा... बोलो बोलो क्या करना पड़ेगा..." मैं उठ कर चाचा के पास गई।
"कुछ खास नहीं... वही जो तुम पहले कितनी ही बार कर चुकी हो..."
"अरे वाह चाचा ...... तब तो कम्प्यूटर मेरा हो गया......" मैं चहक उठी।
"आओ... उस कमरे में..."
मैं चाचा के पीछे पीछे उनके बेड रूम में चली आई। उन्होने अन्दर से रूम को बन्द करके कुन्डी लगा दी। मुझे लगा कि चाचा कहीं कुछ गड़बड़ तो नहीं करने वाले हैं। मेरा शक सही निकला।
उन्होने मेरा हाथ पकड़ लिया और कहा "नेहा... मैं बरसों से अकेला हूं... तुम्हें देख कर मेरी मर्दों वाली इच्छा भड़क उठी है... प्लीज़ मेरी मदद करो..."
"चाचा... पर आप तो मेरे पापा के बराबर है..." मैंने कुछ सोचते हुए कहा। एक तो मुझे कम्प्यूटर मिल रहा था ...... पर चाचा ने ये क्यों कहा कि तुम पहले कितनी ही बार कर चुकी हो... चाचा को कैसे पता चला।
"सुनो नेहा ... तुम्हे मुझे कोई खतरा नहीं है... क्योंकि अब मेरी उमर नहीं रही... और फिर मेरा घर तो तुम्हारे लिये खुला है...तुम चाहो तो तुम्हारे दोस्त को भी यहा बुला सकती हो"
मैं समझ गई कि चाचा ये सब पता चल चुका है... अचानक मुझे सब याद गया... शायद चाचा को मेरा ईमेल एड्रेस और पासवर्ड मिल गया था...जो गलती से मेज पर ही लिखा हुआ छूट गया था।
"चाचा... मेरा मेल पढ़ते है ना आप..." चाचा मुस्करा दिये। मैं उनकी छाती से लग गई।
" थैंक्स नेहा..." कह कर उन्होंने मेरे चूतड़ दबा दिये। मैंने अपने होंठ उनकी तरफ़ बढ़ा दिये... उन्होने मेरे होंठो से अपने होंठ मिला दिये... दारू की तेज महक आई... चाचा ने मेरी जीन्स ढीली कर दी... फिर मैंने स्वयं ही झुक कर उतार दी... टोप अपने आप ही उतार दिया। चाचा ने बड़े प्यार से मेरे जिस्म को सहलाना शुरु कर दिया। मेरे बोबे फ़ड़क उठे... ब्रा कसने लगने लग गई... पेंटी तंग लगने लगी... पर मुझे कुछ भी करने की जरूरत नहीं पड़ी... चाचा ने खुद ही मेरी पुरानी सी ब्रा खींच कर उतार दी और पैंटी भी जोश में फ़ाड़ दी।
"चाचा ये क्या... अब मैं क्या पहनूंगी..." मैंने शिकायत की।
"अब तुम मेरी रानी हो... तुम ये पहनोगी... नही... मेरे साथ चलना... एक से एक दिला दूंगा......" चाचा जोश में भरे बोले जा रहे थे। मुझे नंगी करके चाचा ने बिस्तर पर लेटा दिया। मेरे पांव चीर दिये और मेरी चूत पर अपने होन्ठ लगा दिये। मेरी चूत में से पानी निकलने लगा... चुदने की इच्छा बलवती होने लगी। मेरा दाना भी फ़ड़कने लगा... चाचा जीभ से मेरे दाने को चाट रहे थे... साथ में जीभ चूत में भी अन्दर जा रही थी। मेरी उत्तेजना बढ़ती जा रही थी। अब चाचा ने मेरे पांव और ऊपर उठा दिये...मेरी गाण्ड ऊपर गई... उन्होने मेरी चूतड़ की दोनो फ़ांके अपने हाथों से चौड़ा दी। और गाण्ड के छेद पर अपनी जीभ घुसा दी और गाण्ड को चाटने लगे। मुझे गाण्ड पर तेज गुदगुदी होने लगी।
"हाय चाचा... बहुत मजा रहा है..."
कुछ देर गाण्ड चटने के बाद उनके हाथ मेरे बदन की मालिश करने लगे...
अब मैं चाचा से लिपट पड़ी...उनकी कमीज़ और दूसरे कपड़े उतार फ़ेंके। उनका बदन एकदम चिकना था... कोई बाल नहीं थे... गोरा बदन... लम्बा और मोटा लण्ड झूलता हुआ। सुपाड़ा खुला हुआ ...लाल मोटा और चिकना। मैंने चाचा का लण्ड पकड़ लिया और दबाना शुरू कर दिया। चाचा के मुह से सिसकारी निकलने लगी।
"आहऽऽऽ नेहा... कितने सालों बाद मुझे ये सुख मिला है... हाय... मसल डाल..."
मैंने चाचा का लण्ड मसलना और मुठ मारना चालू कर दिया। वो बिस्तर पर सीधे लेट गये उनका लण्ड खड़ा हो चुका था... मेरे से रहा नहीं गया... मैं उनके ऊपर बैठ गई और चूत के द्वार पर लण्ड रख दिया। मैंने जोश में जोर लगा कर सुपाड़ा को अन्दर लेने की कोशिश करने लगी... पर लण्ड बार बार इधर उधर मुड़ जाता था... शायद लण्ड पर पूरी तनाव नहीं आया था।
"चाचा......ये तो हाय...जा नहीं रहा है..." मैं तड़प उठी...
" बस ऐसे ही मुझे रगड़ती रहो... लण्ड मसलती रहो..." मैं चाचा से ऊपर ही लिपट पड़ी और चूत को उनके लण्ड पर मारने लगी। पर वो नहीं घुस रहा था। मैं उठी और उनके लण्ड को मुख में ले कर चूसने लगी... उन्के लण्ड मे बस थोड़ा सा उठान था। सीधा खड़ा था पर नरम था... चाचा अपने चूतड़ उछाल उछाल कर मेरे मुख को ही चोदने लगे। मैंने उनका सुपाड़ा बुरी तरह से चूस डाला और दांतो से कुचला भी... नतीजा... एक तेज पिचकारी ने मेरे मुख को भिगा दिया...चाचा ज्यादा सह नहीं पाये थे। चाचा जोर लगा लगा कर सारा वीर्य मेरे मुख में निकाल रहे थे। मैंने कोशिश की कि ज्यादा से ज्यादा मैं पी जाऊं। मैं उनका लण्ड पकड़ कर खींच खींच कर रस निकालने लगी... चाचा का सारा माल बाहर चुका था। उनका सारा जोश ठंडा पड़ चुका था... उनका लण्ड और भी ज्यादा मुरझा गया था। और वो थक चुके थे।
मैं पलंग से उतर कर नीचे बैठ गई और दो अंगुलियों को चूत मे डाल कर अन्दर घुमाने लगी... कुछ ही देर में मैं भी झड़ गई। मैं जल्दी से उठी और बाथ रूम में जा कर मुंह हाथ धो आई... चाचा दरवाजे पर खड़े थे...
" नेहा... तुम्हे कैसे थैंक्स दूं... आज से ये घर तुम्हारा है...आओ भोजन करें..."
"चाचा... पर आपका तो खड़ा होता ही नहीं है... फिर भी इतना ढेर सारा पानी कैसे निकला..."
"बेटी... बस ये ही तो खड़ा नहीं होता है... इच्छायें तो वैसी ही रहती हैं... इच्छायें शांत हो जाती है तो ही काम में मन लगता है..."
बाहर से नौकर को बुला कर डिनर लगवा दिया... और कहा," मेरी कार ले जाओ ... और ये कम्प्यूटर सेट नेहा बेटी के होस्टल में लगा दो।
मैं खुश थी कि बिना चुदे ही कम्प्युटर मुझे मिल गया। डिनर के बाद मैं होस्टल जाने लगी तो एक बार चाचा ने फिर से मुझे गले लगा लिया।
"चाचा ... प्लीज़ आप दुखी मत होईये... आपकी नेहा है ना... आपका पूरा खयाल रखेगी..." चाचा को किस करके मैं होस्टल की तरफ़ चल पड़ी।
चाचा मुझे जाते हुए प्यार से निहारते रहे......

Sunday 26 January 2014

अगर नौकरी करनी है तो तुम्हें हमारी चूत को चोद कर फाड़ना पड़ेगा।

एक शहर में एक सेठ रहता था। चूंकि वो काफी रईस था तो उसने शादियाँ भी चार की थी। उस सेठ की उम्र करीब 64-65 रही होगी। अब आप सोच सकते हैं कि इस उम्र के आदमियों का लण्ड क्या खड़ा होता होगा। उसके घर में हर काम के लिये अलग-अलग नौकर लगे हुए थे। उसकी तीन पत्नियां का तो ठीक-ठाक था क्योंकि उन्होंने सेठ से भरपूर मजा लिया था पर चौथी पत्नी की हालत खराब थी क्योंकि उसकी उम्र २५-२७ रही होगी और इस उम्र में उसे किसी भी प्रकार का मजा नहीं मिल पा रहा था।
आखिर उसने तंग आकर ऐसा फैसला किया कि आप सबके होश उड़ जाएंगे।
उसका नाम तारा था, उसकी एक नौकरानी थी जिसका नाम कृतिका था।
अपनी जवानी से तंग आकर एक दिन तारा ने कृतिका से कहा- अब नहीं रहा जाता ! मैं तो अब नौकरों से अपनी चूत चुदवाकर अपनी जवानी की प्यास को ठण्डी करूँगी !
कृतिका चौंक गई यह सुनकर !
वो बोली- आप किससे चुदवाएंगी ?
तारा ने कहा- तू मेरा साथ दे तो हम दोनों को भरपूर मजा मिल सकता है !
कृतिका भी एक नंबर की चुदक्कड़ थी और सेठ से तो कई बार चुदवा चुकी थी। वो तुरंत तैयार हो गई। फिर तारा ने अशोक और मनोज नाम के नौकरों को चुना और कृतिका से उन दोनों को बुलवाया। कृतिका उन दोनों नौकरों को बुलाकर तारा के पास ले आई। वे दोनों नौकर काफी गरीब थे और सेठ के यहां दो वक्त की रोटी के लिये जी-तोड़ मेहनत करते थे। वे दोनों तारा के सामने किसी मुजरिम की तरह खड़े हो गये।
तारा ने उन दोनों को ऊपर से नीचे तक गौर से देखा और कृतिका से कहा- वाह क्या हट्‌टे कट्‌टे हैं ये दोनों !
फिर उसने नौकरों से कहा- तुम दोनों को मेरा एक काम करना होगा !
नौकरों ने डरते-डरते पूछा- क्या काम है मालकिन ?
तारा ने कहा- तुम्हें हमारी चूत को चोद कर फाड़ना पड़ेगा।
उन दोनों नौकरों के तो होश ही उड़ गए। दोनों की जबान से आवाज नहीं निकल रही थी। फिर उन दोनों ने हिम्मत करके पूछा- आप हमारी परीक्षा क्यों ले रहीं हैं मालकिन ?
तो तारा ने गुस्सा होकर कहा- मादरचोदो ! अगर नौकरी करनी है तो हमारा यह काम करना पड़ेगा, नहीं तो जाओ तुम्हारी आज से छुट्‌टी।
अब उन दोनों के आगे कोई दूसरा चारा नहीं था। तो उन दोनों ने तारा से पूछा- हमें करना क्या है?
तब तारा ने कृतिका से कहा- दरवाजा बंद कर दे !
कृतिका ने जल्दी से दरवाजा बंद कर दिया।
फ़िर तारा ने कहा- अब तुम दोनों अपने अपने कपड़े उतार कर मेरे पास आओ।
उन्होंने ऐसा ही किया और एकदम नंगे होकर तारा के सामने खड़े हो गए। तारा ने उन दोनों का लंड देखा तो उसकी बांछें खिल गई। उसने जल्दी से अशोक का लंड अपने हाथ में लिया और मुठ मारने लगी। मनोज के लंड को अपने मुँह में ले लिया और चूसने लगी।
कुछ देर लंड चूसने के बाद वो बिस्तर पर चित्त लेट गई और उन दोनों को भी बिस्तर पर आने का न्यौता दिया। दोनों बिस्तर पर लेट गए। कृतिका भी नंगी होकर अपनी चूत में उंगली डालकर मजे ले रही थी।
फिर तारा ने दोनों से कहा- मेरी एक-एक चूची दोनों बांट लो और उसे मसल डालो, चाट डालो, चूस डालो।
दोनों ने ऐसा ही किया। करीब १० मिनट चूची की चुसाई के बाद तारा ने कहा- अशोक ! मेरी सलवार उतारो !
अशोक ने सलवार का नाड़ा खोलकर उसे नीचे खिसकाया। आधा खिसकते ही तारा ने उसे रोक दिया और कहा- अभी इतना ही ! बाकी कुछ देर के बाद !
फिर से अशोक ने तारा की चूची चूसना शुरू कर दिया।
तारा ने कृतिका से कहा- क्या अपनी चूत को उंगली से चोद रही है ! इधर आ और मेरी चूत को चाट !
कृतिका दौड़कर आई और तारा की चूत को चाटने लगी। कुछ देर के बाद तारा ने उसे रोक दिया और कहा- पूरा माल तू ही चाट लेगी तो ये दोनो बेचारे क्या मुठ मार कर रहेंगे? तू हट और इन दोनों को चाटने दे।
फिर अशोक को इशारे से तारा ने चूत चाटने को कहा। अशोक जल्दी से चूत चाटने के लिये नीचे खिसक गया। उसकी तो आज जिंदगी बन गई। तारा जैसी औरत की चूत जो रसगुल्ले की तरह थी उसे वो चाटने लगा। तारा मदहोश होने लगी। फिर उसने मनोज को भी मौका दिया। वो भी जल्दी से नीचे गया और चूत चाटने लगा। तारा की चूत से नमकीन पानी गिरने लगा जो मनोज गटगटा कर पी गया। इधर कृतिका तारा की चूची को चूसती जा रही थी। कुछ देर के बाद तारा ने कहा- बस, अब मेरी सलवार पूरी उतारो।
दोनों ने ऐसा ही किया- उसे पूरी तरह से नंगी कर दिया।
फिर तारा ने कहा- मनोज अब तुम मेरी चूत को चोद कर उसका भरता बना दो !
मनोज ने आव देखा न ताव, अपना लंड तारा की चूत के दीवाल पर लगाकर ऐसा धक्का मारा कि पूरा का पूरा लंड एक ही बार में तारा की चूत को ककड़ी की तरह चीरता हुआ समा गया। तारा का बदन ऐंठने लगा। फिर तुरंत अशोक तारा की एक चूची और कृतिका भी एक चूची चूसने लगी, जिससे उसे कुछ राहत मिली।
तारा थोड़ी देर के बाद जोश में आ गई और नीचे से चूतड़ उछालने लगी। मनोज ने भी अपनी रफ़्तार बढ़ा दी और तारा की चूत में ताबड़तोड़ धक्के मारने लगा। कुछ देर के बाद तारा ने मनोज को नीचे आने के लिये कहा और मनोज नीचे चित्त लेट गया।
फिर तारा मनोज के ऊपर चढ़ गई और उसके लंड को अपनी चूत में डाल लिया और खुद धक्के मारने लगी।
फिर थोड़ी देर में उसने अशोक को कहा- तुम पीछे से मेरी गांड में अपना लंड डालो।
अशोक के लंड में कृतिका ने खूब तेल लगा दिया और फिर अशोक ने तारा की गांड की छेद में लंड को रखकर एक करारा धक्का मारा। तारा के मुंह से चीख निकल गई लेकिन थोड़ी ही देर में सब शांत हो गया और उन दोनों ने धक्कों की रफ़्तार बढा दी।
करीब २० मिनट के बाद तारा ऐंठने लगी और चिल्लाने लगी- चोदो मुझे ! फाड़ दो मेरी गांड और चूत ! मैं तुम दोनों को मालामाल कर दूंगी ! चोदो मादरचोदो ! चोदो मुझे ! आ .. .. … …. ….. हा …………. और ………… तेज चोदो।
फिर कुछ ही देर में वो झड़ गई लेकिन अशोक और मनोज उसे चोदते रहे और वो चुदवाती रही। कुछ देर के बाद उन दोनों ने भी अपना अपना माल उसकी चूत और गांड में उड़ेल दिया। फिर उस रात बारी बारी से कई बार उन दोनों ने तारा और कृतिका को चोदा।